प्रतापगढ़ के पट्टी क्षेत्र में कुछ ज्यादा ही घटनाएं हो रही हैं। इस क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक मारपीट की हुई घटनाओं में कई वर्ग के लोग आमने सामने हुए हैं। लेकिन नेता सवर्ण बनाम पिछड़ा वर्ग के विवाद में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं।
पिछले हफ्ते दो वर्गों में हुई मारपीट की घटना को लेकर जिले की राजनीति गर्म हो गयी है। अपने अपने वर्गों की सहानुभूति हासिल करने के लिए नेताओं का जिले में जमावड़ा शुरू हो गया है। पूर्व मंत्री राजभर कृष्णा पटेल पूर्व विधायक सिंह एवं सपा के कई नेता मौके पर पहुंच कर इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश की लेकिन प्रशासन वहां जाने की इजाजत नहीं दी। इसलिए रास्ते में ही रोष व्यक्त कर संवेदना लूटने का प्रयास किया।
हाथ से पिछडा वर्ग का खिसकता वोट बैंक देख अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल सकते में आ गईं। आनन फानन में वे भी लाव लश्कर के साथ पट्टी पहुंच गईं। इस समय एक वर्ग को सांत्वना देते हुए सवर्णों पर जमकर बरसीं। इसी के साथ अनुप्रिया पटेल ने पुलिस अधीक्षक जिलाधिकारी एवं कप्तान को भी खूब खरी खोटी सुनाईं। अब सवाल यह उठता है कि जब विपक्षी दलों के नेताओं को मौके पर जाने से रोका गया तो किसकी इजाजत पर अनुप्रिया पटेल को पट्टी जाने दिया गया। भीड़ पर प्रतिबंध होने के बावजूद पटेल ने कैसे लाव लश्कर के साथ पहुंची। इस पर गौर करने की जरूरत है। इनके खिलाफ पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए। जिससे अन्य नेता सबक ले और कानून का पालन करने पर बाध्य होना। बेहतर होता अनुप्रिया पटेल दूसरे पक्ष को भी सुनतीं। जिसकी गलती होती उसे फटकारती लेकिन इन्हें तो जातीय राजनीति करनी है।
आखिर इनके दल के पूर्व सांसद हरवंस सिंह और उप चुनाव में अपना दल के प्रत्याशी राजकुमार को सवर्णों ने भी दिल खोलकर समर्थन किया। ऐसे में अनुप्रिया की ओछी राजनीति से जिले के सवर्ण खुद को ठगे से महसूस कर रहे है। स्वाभविक भी है। क्योंकि सभी वर्ग लोकसभा या विधानसभा चुनाव में बढ़ चढ़ कर समर्थन किया था।
लेखक: राकेश पाण्डेय
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