गांव के बारे में तो छोड़िए उन्हें अपने जिले की सभी तहसीलों तक के नाम याद नहीं हैं। राजनीति में नेता की शिक्षा उसकी वैचारिक ईमानदारी होती है। नेता वैज्ञानिक नहीं बल्कि अपने नागरिकों के प्रति वैचारिक रूप से ईमानदार होना चाहिए,नीतियां बनाने के लिए तो पूरी मशीनरी है। तस्वीर में देखिए, प्लास्टिक की कुर्सी है, आसपास गांव के लोग हैं, कोई समस्या होगी तो अचक से आकर कान में कह जाएगा कि साहब ये दिक्कत आ रही है,
आसपास के लोगों की निकटता से सब आसानी से देखा और समझा जा सकता है. तेजस्वी सीमेंट के खम्बे पर ऐसे ही सहज होकर खाना खा रहे हैं जैसे कभी अटल बिहारी वाजपेयी गांव गांव जाकर अचार और छाछ से रोटी खाया करते थे। यही अंदाज लालू जी के बेटों में है. ये अंदाज अमित शाह के बेटों में नहीं मिल सकता, ये अंदाज हेमा मालिनी में भी नहीं मिल सकता, और उस आदमी में तो बिल्कुल नहीं जो एक रैली में भाषण देने से पहले 4 बार कपड़े बदलता है।
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