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Friday, 17 July 2020

राहुल किसी भी तरह से नरेन्द्र मोदी को चुनौती देते या उनसे मुकाबले की तैयारी करते लगते हैं क्या?

राजनीतिक दल गिरोह नहीं होते कि माल बराबर बंटेगा।


मैंने लिखा, मुझे नहीं लगता राहुल गांधी बदलेंगे। बहुत सारे लोग कह रहे हैं बदलना पड़ेगा।  जाहिर है, सत्ता में आने के लिए। मैंने कल यही कहा था कि राहुल गांधी सत्ता के लिए बदलेंगे ऐसा लगता नहीं है। पर राजनीति में हर कोई खुद को सयाना समझता है चाहे अपने अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन का सदस्य न चुना गया हो। हालांकि, राहुल गांधी के मामले में मुद्दा राजनीति का नहीं है। कांग्रेस मुक्त भारत के जवाब में वे कह चुके हैं कि भाजपा को लड़कर हराउंगा पर उनकी राजनीति से लगता नहीं है कि वे ऐसा कुछ करने की कोशिश भी कर रहे हैं। हो सकता है ऐसा "चौकीदार चोर है" के पिटने के कारण हो। 

यह भी संभव है कि इसपर वे भाजपा की प्रतिक्रिया से डर गए हों या रिटायर जनरल के भी सगर्व चौकीदार बनने तक की राजनीति का स्तर समझ कर हार मान ली हो। पर मेरा पक्का विश्वास है कि वे नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए उनके स्तर पर नहीं उतरेंगे। आप उनके स्तर या रणनीति को चाहे जो मानिए। राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ चुके हैं। काफी समय से और अगर किसी को आगे आना होता तो आ गया होता पर ऐसा नहीं हुआ। फिर भी वे अध्यक्ष नहीं है। ये सब कुर्सी के लिए लार टपकाने वालों को समझ नहीं आएगा। वे इसे नाकारा होना कह सकते हैं। हो सकता है, उनके दिमाग में कोई रणनीति हो और मुझे समझ नहीं आ रही हो। पर ऐसा लगता नहीं है। मैं इसीलिए कह रहा हूं कि वे नहीं बदलेंगे।   

राहुल गांधी की राजनीति जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया को उत्तर प्रदेश की हार के बावजूद सजा नहीं मिली थी तो राजेश पायलट को जीतने के बाद भी ईनाम नहीं मिलना था। अगर प्रियंका गांधी को सक्रिय होने के कारण दिल्ली से बेदखल होना पड़ा तो विकल्प उन्होंने लखनऊ चुना। इससे पहले वे बसों की पेशकश कर अच्छा प्रदर्शन कर चुकी हैं। आदित्य नाथ को घेर ही लिया था। क्या ज्योतिरादित्य पार्टी नहीं छोड़े होते तो ऐसा कुछ कर पाते? और इससे समझिए कि उन्हें कैसे लोग चाहिए। यह राहुल गांधी की शैली है। और इसीलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का जाना या सचिन पायलट के जाने की धमकी – राहुल गांधी के लिए बेमतलब रही। आपकी राजनीति में उसका मतलब है तो राहुल गांधी आपको सलाहकार नहीं बनाने वाले। वे सिंधिया और पायलट को आजमा चुके हैं। राहुल गांधी की राजनीति में असंतुष्ट कांग्रेसी कांग्रेस में ही विरोध और विद्रोह करेगा। वह दल बदलने की धमकी नहीं देगा। 

आदर्श स्थिति यही है और कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र नहीं होने का ही आरोप लगाया जाता है पर उसकी मांग कौन कर रहा है। उसकी जरूरत कौन बता रहा है। और जो विपक्ष में जा रहा है उसे वहां लोकतंत्र और प्रतिभा की कद्र दिख रही है। मेनका गांधी नहीं दिख रही हैं। राजीव प्रताप रुड़ी नहीं दिख रहे हैं। राजनीति में प्रतिभा के हिसाब से पद का मतलब सिर्फ और सिर्फ कमाने का मौका होता है। वरना ज्योतिरादित्य सिंधिया जो सेवा करने भाजपा में गए हैं वो कांग्रेस में कर ही सकते थे। सचिन पायलट क्यों मुख्यमंत्री बनने के लिए परेशान हैं। उपमुख्यमंत्री कम होता है क्या? मैं गलत हो सकता हूं पर राजनीतिक दल गिरोह नहीं है कि माल बराबर बंटेगा। 

कपिल सिब्बल ने तो कहा ही है कि घोड़ों को अस्तबल में रोका जाना चाहिए। पर राहुल गांधी को घोड़ों की नहीं राजनीतिकों – राजनेताओं की जरूरत है। असल में राजनीतिक दल सेवा भावना वाले लोगों का समूह होना चाहिए पर यह कमाने के लालची लोगों का समूह बन गया है। नालायक लोग अगर सांसद के वेतन भत्ते भर के लिए कोई गिरोह बना लें तो वह पार्टी नहीं हो जाएगी। भले अभी तक ऐसा ही माना जाता है। और यही चलता रहा तो विधानसभाओं में जैसा हो रहा है कल को दस-बीस-पचास सांसद वाले दल होने लगे तो केंद्र में होगा। इसलिए वह कोई अच्छी स्थिति नहीं होगी। पर वह अलग मुद्दा है। 

राहुल गांधी वैसी राजनीति नहीं करेंगे। ना ही वे विपक्ष में बने रहने के लिए मेहनत करेंगे। सीटें कुछ और घट जाएं या बढ़ जाएं, उन्हें परवाह नहीं है। वे जोर तभी लगाएंगे जब उन्हें मन लायक लोग मिलेंगे – अच्छी टीम बनेगी। वे समझ रहे हैं बुजुर्गों को मार्गदर्शक मंडल में भेजना भाजपा की फूहड़ नकल होगी। वो ये सब नहीं करने वाले। आप इसका कारण और परिणाम जो बताएं पर यह मान लीजिए कि कांग्रेस में उनके लिए कोई आडवाणी नहीं है जिसे मार्गदर्शक मंडल में भेजना उनकी मजबूरी या चाहत हो। वैसे भी वे बुजुर्गों के साथ जो व्यवहार करते हैं वैसा मामूली पूंजीपतियों के बच्चे नहीं करते। राहुल की कार्यशैली बिल्कुल अलग है और वह चुनाव जीतने वाली नहीं है। इसीलिए मैंने लिखा था कि आपके पास विकल्प नहीं है। आप नरेन्द्र मोदी को पसंद करते हैं तो करते रहिए। वे नरेन्द्र मोदी का विकल्प बनना ही नहीं चाहते हैं। 

राहुल किसी भी तरह से नरेन्द्र मोदी को चुनौती देते या उनसे मुकाबले की तैयारी करते लगते हैं क्या? राहुल गांधी के पास साक्षी महाराज से लेकर गिरिराज सिंह और साध्वी प्रज्ञा तक को हरा सकने वाले उम्मीदवार हैं क्या? और तो और क्या आपको लगता है कि वे सिंधिया या पायलट के खिलाफ ढंग का उम्मीदवार उतार पाएंगे? मुझे तो ऐसा कोई नजर नहीं आ रहा है। फिर वे निश्चिंत हैं तो सिर्फ इसलिए कि जनता जब नरेन्द्र मोदी या भाजपा से चिढ़ेगी तो राहुल गांधी को पसंद करेगी और फिर राहुल गांधी के उम्मीदवार वैसे ही जीतेंगे जैसे चौकीदार जीत गए। अगर ऐसा नहीं होगा तो अमित शाह ने ठीक कहा है वे 50 साल राज करेंगे। करें।

संजय कुमार सिंह जी की वाल से साभार।

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